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छत्तीसगढ़ी सिनेमा गुलजार..हर साल यहां औसतन 15 फिल्में रिलीज हो रही

छत्तीसगढ़ी सिनेमा गुलजार..हर साल यहां औसतन 15 फिल्में रिलीज हो रही
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छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है जहां की रीजनल सिनेमा इंडस्ट्री अन्य नवोदित राज्यों की तुलना में बूम कर रही है। हर साल यहां औसतन 15 फिल्में रिलीज हो रही हैं। यह इंडस्ट्री अब आत्मनिर्भर भी हो चुकी है। अब फिल्म निर्माण के लिए इन्हें मुंबई की दौड़ नहीं लगानी पड़ती। तकनीकी तौर भी यहां का सिनेमा काफी आगे बढ़ चुका है। यही वजह है कि वीएफएक्स से लेकर बीजीएम, डीआई और मिक्सिंग जैसे पोस्ट प्रोडक्शन सेग्मेंट रायपुर में होने लगे हैं। इतना ही नहीं, अब बजट भी एक करोड़ के पार होने लगा है। यह एक ऐसा राज्य है जहां सिर्फ शहरी क्षेत्रों में ही फिल्में रिलीज होती हैं। इसकी वजह है गांवों में थिएटर का न होना, जबकि सर्वाधिक दर्शक ग्रामीण क्षेत्रों के ही हैं। Chhattisgarhi cinema

पड़ोसी राज्यों को भी हमारी फिल्में पसंद

दिलचस्प यह कि छत्तीसगढ़ के हर स्थान पर छत्तीसगढ़ी नहीं बोली जाती। इस लिहाज से फिल्मों की कमाई भी सीमित क्षेत्रों पर निर्भर करती है। महत्त्वपूर्ण तथ्य यह कि हमारी फिल्में पड़ोसी राज्यों में भी पसंद की जाने लगी हैं। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के कई शहरों में छत्तीसगढ़ी फिल्मों के कद्रदान हैं। अब छत्तीसगढ़ी फिल्में भोजपुरी और उड़िया में भी बनने लगी है। कुछेक फिल्में तो ऐसी रहीं जिसकी शूटिंग एक ही सेट पर दोनों भाषाओं पर हुई हैं। यहां की फिल्मों की कामयाबी का अंदाजा हंस झन पगली फंस जबे से लगा सकते हैं। इस फिल्म ने 12 करोड़ से ज्यादा कमाए जो छोटी इंडस्ट्री के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। Chhattisgarhi cinema

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बॉलीवुड के बढ़ते कदम..

छत्तीसगढ़ में सिर्फ रीजनल सिनेमा ही नहीं बन रहा, अब बॉलीवुड के भी कदम यहां बढ़ने लगे हैं। बस्तर से लेकर सरगुजा तक बॉलीवुड फिल्में और वेबसीरीज शूट होने लगी हैं। इसका फायदा यहां के कलाकारों को टेक्निकल कामगारों को मिल रहा है। मुंबई के प्रोजेक्ट के लिए यहां के मेकर्स लाइन प्रोडॺूसर की भूमिका में हैं। यहां के लोकेशंस और फिल्म पॉलिसी ने बॉलीवुड का ध्यान खींचा है। बड़े हाउस प्रोडक्शन भी यहां फिल्में शूट करने में रुचि ले रहे हैं। Chhattisgarhi cinema

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यहां टूरिंग थिएटर आज भी बरकरार

राज्य में पहले 38 सेंटर में फिल्में रिलीज होती थी अब 47 सेंटर हैं। बावजूद फिल्में संघर्ष के दौर में हैं। दरअसल, दर्शकों तक फिल्मों की पहुंच कम है। यही वजह है कि गांवों में मेले में छत्तीसगढ़ी फिल्में लगती हैं तो वहां पैर रखने तक की जगह नहीं होती। संभवत: यह पहला राज्य है जहां टूरिंग थिएटर का ट्रेंड आज भी बरकरार है। अनुपम वर्मा फिल्मकार और विश्लेषक 

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रिपोर्ट- ताबीर हुसैन


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