नेशनल खबर डेस्क खबर 24×7 नवी मुंबई // पनवेल इलाके में बीती रात मानवता को झकझोर देने वाली एक घटना सामने आई. तक्का परिसर स्थित स्वप्नालय आश्रम के ठीक बाहर, फुटपाथ पर एक नवजात बच्ची लावारिस हालत में पाई गई. रात के सन्नाटे में, किसी ने इस मासूम को बड़े ही जतन से एक बास्केट में छोड़ा था – साथ में दूध की बोतल, सेरेलैक और कुछ कपड़े भी रखे थे, मानो अंतिम विदाई से पहले मां-बाप ने अपना सारा प्यार उड़ेल दिया हो. लेकिन इस दृश्य से भी ज़्यादा मार्मिक था, उस बास्केट में रखी एक चिट्ठी, जिसने हर पढ़ने वाले की आँखों में आँसू ला दिए.

“हमें माफ़ करना… हमारे पास कोई रास्ता नहीं था” – बेबस माँ-बाप का दर्द
यह चिट्ठी क्रूरता का नहीं, बल्कि बेबसी और हृदय विदारक मजबूरी का दस्तावेज़ थी. अंग्रेज़ी में लिखे हर शब्द में माता-पिता की टीस साफ झलक रही थी. उन्होंने लिखा था:
“हमें बहुत दुख है कि हमें यह करना पड़ रहा है. हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था. हम इस बच्ची का मानसिक और आर्थिक रूप से पालन-पोषण नहीं कर सकते. कृपया इसे किसी के साथ न जोड़ें या मामले को बढ़ाएं नहीं. हम नहीं चाहते कि वह उन मुश्किलों का सामना करे, जो हमें झेलनी पड़ रही हैं. हम आपसे विनती करते हैं कि इसकी जिंदगी को बचाएं. हम उम्मीद करते हैं कि एक दिन हम उसे वापस ले सकेंगे. हम उसके करीब हैं. हमें माफ़ करें.”
यह सिर्फ़ एक चिट्ठी नहीं, बल्कि दो लाचार हृदयों की पुकार थी, जो अपनी बच्ची के बेहतर भविष्य के लिए उसे खुद से दूर करने को मजबूर हुए थे. जिसने भी इसे पढ़ा, उसका दिल भर आया.
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रात के अंधेरे में आश्रम के बाहर फुटपाथ पर रोती बच्ची
स्थानीय लोगों के अनुसार, रात के सन्नाटे को चीरती बच्ची के रोने की आवाज़ सुनकर कुछ लोग दौड़कर आए. बास्केट में लिपटी नवजात को देखकर वे सन्न रह गए. तुरंत पनवेल शहर पुलिस को सूचना दी गई. एक स्थानीय निवासी ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा, “यह सोचकर ही दिल दहल जाता है कि कोई माँ-बाप अपनी बच्ची को इस तरह छोड़ने को मजबूर हुए. हमें समाज के रूप में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कुछ करना होगा.”
पुलिस ने मौके पर पहुंचकर बच्ची को अपने कब्जे में लिया और तुरंत पास के अस्पताल में भर्ती कराया. डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची की हालत स्थिर है और उसे आगे की मेडिकल जांच के लिए अलीबाग भेजा जाएगा.
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एक सवाल जो समाज से है: क्या हम ऐसी बेबसी रोक सकते हैं?
यह घटना सिर्फ़ एक नवजात के परित्याग की ख़बर नहीं है, बल्कि यह समाज के सामने कई गंभीर सवाल खड़े करती है. आख़िर ऐसी क्या परिस्थितियाँ रहीं होंगी, जहाँ माता-पिता को अपने ही कलेजे के टुकड़े को छोड़ जाने का इतना कठोर फैसला लेना पड़ा? यह चिट्ठी, अपने हर शब्द में, उन माता-पिता के दर्द और उनकी बेबसी को बयां करती है, जो शायद अपने बच्चे को वह जीवन नहीं दे पा रहे थे जिसके वे हक़दार थे.
पुलिस जहां बच्ची के माता-पिता की तलाश में जुटी है, वहीं यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है: क्या हमारा समाज ऐसी परिस्थितियों को रोकने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार है? क्या हमारे पास ऐसे सुरक्षा जाल हैं, जो किसी भी परिवार को इतनी हताशा में न धकेलें कि उन्हें यह कदम उठाना पड़े?
यह बच्ची आज अस्पताल में सुरक्षित है, लेकिन उस चिट्ठी में लिखा हर शब्द एक टीस बनकर समाज को चुनौती दे रहा है – क्या हम इस मासूम को एक बेहतर भविष्य दे पाएंगे और उन बेबस माता-पिता की मजबूरी को समझ पाएंगे?
There was a newborn baby girl in a basket on the pavement outside the ashram, along with a letter, which brought tears to the eyes when read.
