रायपुर भी गजब शहर है…वरिष्ठ पत्रकार मोहन तिवारी की कलम से
अब तक “अनिवार्य सेवा” के नाम पर पेट्रोल की सप्लाई बाधित न हो, इसके लिए पूरा प्रशासन चौकसी करता रहा है। पेट्रोल पंप संचालकों को कभी हड़ताल की इजाज़त तक नहीं दी गई क्योंकि पेट्रोल सप्लाई को ज़रूरी सेवा माना गया। लेकिन अब उसी प्रशासन ने पंप संचालकों को मौन सहमति दे दी कि वे बिना हेलमेट वाले ग्राहकों को पेट्रोल न दें।

यानी जो सेवा हर हाल में चलनी चाहिए थी, उसमें भी अब शर्तें जोड़ दी गईं कि बिना हेलमेट के पेट्रोल नहीं हालांकि कहा ये जा रहा है कि ये बाइक सवारो के शुभचिंतक पेट्रोल पंप संचालकों का प्लान था जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया है, पर सवाल ये है…

ट्रैफिक पुलिस का काम अब पेट्रोल पंप अटेंडेंट कब से करने लगे?
ग्राहक पैसा दे रहा है, तो ईंधन उसका अधिकार है। पेट्रोल पंप अनिवार्य सेवा है, न कि ट्रैफिक थाना।
यही कारण है कि कुछ प्रदेशों में इसे अपने यहां नियम बनाने की कोशिश की गई तो कोर्ट पर उसे कोर्ट में उसे चुनौतियां चुनौती दी गई है।
वैसे तो पेट्रोल पंप संचालक को और सरकार की संयुक्त इस पहल को सुनने में बड़ा अच्छा लगता है कि हर व्यक्ति हेलमेट पहनने का तभी उसे पेट्रोल मिलेगा, पेट्रोल पंप चालू की वजह से सब लोग हेलमेट पहनना लगेंगे लेकिन असल में?
हकीकत यह है कि लोग एक-दूसरे से हेलमेट उधार लेकर पेट्रोल भरवा रहे हैं। कोई हेलमेट हाथ में पकड़कर आ गया, कोई सीट पर रख दिया – और पेट्रोल मिल गया। सड़क सुरक्षा गई खड्डे में, नियम का जुगाड़ पूरा हो गया। ऐसे में हेलमेट पहनने की आदत बनाना और इस नियम का मूल उद्देश्य हेलमेट पहनने के लिए मजबूर करना सफल होता नहीं दिखता
दिलचस्प यह है कि इस पूरे नियम का कोई लिखित आदेश सरकार ने जारी ही नहीं किया।
फिर भी पेट्रोल पंपों में यह नियम चल रहा है। यानी सरकार की मौन स्वीकृति ही सबसे बड़ा आदेश है।
कानूनन ज़िम्मेदारी सरकार की, लेकिन मैदान में उतारे गए पंप संचालक। विरोध हुआ तो गालियाँ पंप वालों की आड़ में एक मनमानी ही है,
हेलमेट पहनने में किसी के दिलचस्पी नहीं हेलमेट पहनने में कोई सही प्रयास कर रहा है एक नियम बना दिया गया जिसे लागू करना कठिन और जिसका लाभ मामा कठिन केवल बाइक सवार परेशान से हर पेट्रोल पंप में दिखाई दे जाते हैं
हेलमेट की अनिवार्यता को लेकर रायपुर का इतिहास भी गवाह है कि रायपुर की जनता ने कभी अनिवार्यता स्वीकार नहीं की इसीलिए अभियान बार-बार फेल होता रहा
पिछले 15 सालों में हेलमेट को लेकर 15से ज़्यादा प्रयोग हो चुके हैं। भाजपा सरकार में कांग्रेस ने विरोध किया, कांग्रेस सरकार में भाजपा ने। हर बार ट्रैफिक और तंग सड़कों का हवाला देकर नियम ध्वस्त हो गया।
लोग कहते हैं कि रायपुर की तंग गलियों और भारी ट्रैफिक में हेलमेट सुरक्षा से ज्यादा मुसीबत है – न हॉर्न सुनाई देता है, न विज़न क्लियर। और यह तर्क सही भी लगता है कि रायपुर के इनर सर्कल में हेलमेट पहनकर गाड़ी चलाना ही मुश्किल है
लेकिन एक बार फिर से नियम थोपा गया है और इस बार सरकार और पुलिस विभाग पीछे है और पेट्रोल पंप संचालक आगे पर असली खेल कहाँ है? ये भी सवाल लोगो के मन में उठ रहा है
चर्चा यह भी है कि हर बार हेलमेट कंपनियां ही इस अनिवार्यता के पीछे सक्रिय रहती हैं।
इस बार भी सरकार बैकफुट पर दिखी और जिम्मेदारी पेट्रोल पंप संचालकों पर डाल दी। सवाल यह भी है कि पेट्रोल पंप संचालक अचानक बाइक सवारों के इतने हमदर्द कब हो गए?
कानूनी पहलू पर नजर डाले तो
मोटर व्हीकल एक्ट साफ कहता है – हेलमेट पहनवाना और नियम लागू करना पुलिस का काम है, न कि पंप वालों का।
कई अदालतें पहले ही कह चुकी हैं कि पेट्रोल पंप से सेवा रोकना जनता के अधिकारों का हनन है। लेकिन रायपुर ने फिर वही गलती दोहरा दी।
मैं भी बाइक चलाता हु मेरे मन में भी सवाल लाता की सिर्फ बाइक वालों से ही क्यों?
अगर सचमुच सुरक्षा इतनी बड़ी चिंता है, तो कार चालकों की काली फिल्म भी चेक करो, गाड़ियों का फिटनेस सर्टिफिकेट भी मांगो। हादसे तो कारों से भी होते हैं। फिर यह नियम सिर्फ मध्यम वर्गीय बाइक सवारों पर ही क्यों थोप दिया गया?
रायपुर का यह नया नियम सुरक्षा से ज्यादा शोशेबाज़ी और सरकारी पल्ला झाड़ने की कला है।
जनता इसे जुगाड़ से तोड़ रही है, पेट्रोल पंप वाले गालियाँ खा रहे हैं और सरकार मौन रहकर जिम्मेदारी से बच रही है।
असल सवाल यही है – क्या सड़क सुरक्षा ऐसे ऊटपटांग प्रयोगों से सुधरेगी या ठोस और ईमानदार व्यवस्था से?
वरिष्ठ पत्रकार मोहन तिवारी के फेसबुक वाल से..
