Sanitary pads // बड़े पैमाने पर उपयोग किए जाने वाले सैनिटरी नैपकिन को लेकर एक स्टडी में अहम खुलासा किया गया है। एक नए अध्ययन में पाया गया है कि भारत में व्यापक रूप से उपलब्ध सैनिटरी पैड में कैंसर पैदा करने वाले रसायन पाए गए हैं। यह एक चौंकाने वाला चिंताजनक तथ्य है, खास तौर पर यह देखते हुए कि भारत में हर चार में से लगभग तीन किशोर महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं। एनवायरनमेंटल एनजीओ टॉक्सिक्स लिंक के प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर और जांचकर्ताओं में से एक डॉ. अमित ने कहा कि आम तौर पर उपलब्ध सैनिटरी उत्पादों में कई हानिकारक रसायनों का मिलना चौंकाने वाला है। इसमें कार्सिनोजेन्स, रिप्रोडक्टिव टॉक्सिन्स, एंडोक्राइन डिसरप्टर्स और एलर्जेंस जैसे जहरीले रसायन शामिल हैं। Sanitary pads
रिपोर्ट: जांच में थैलेट्स और 25 तरह के जहरीले केमिकल मिले
पीरियड्स के दौरान इस्तेमाल होने वाले सस्ते और घटिया क्वालिटी के सैनेटरी पैड्स जानलेवा साबित हो रहे हैं। देश में हर दिन करीब 34 करोड़ सैनेटरी नैपकिन की जरूरत पड़ती है। हाल ही में एनजीओ टॉक्सिक लिंक ने भारत में इस्तेमाल हो रहे सैनेटरी पैड्स की जांच की। इसमें 12 तरह के थैलेट्स और 25 वाष्पशील कार्बनिक यौगिक जाइलीन, एसीटोन, बेंजीन, क्लोरोफॉर्म, टोल्यून, कार्सिनोजेन्स, एलर्जेंस व एंडोक्राइन डिसरप्टर्स पाए। ये थैलेट्स व यौगिक सर्वाइकल कैंसर, अंडाणु, बांझपन, गर्भपात, मेनोपॉज, हार्मोनल शिथिलता, थायराइड, मधुमेह, लिवर, किडनी, हृदय आदि रोगों के लिए जिम्मेदार पाए गए।
सभी नमूनों में थैलेट और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक मिले
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, एनजीओ द्वारा किए गए अध्ययन ने पूरे भारत में उपलब्ध 10 ब्रांडों के पैड (जैविक और अकार्बनिक सहित) का परीक्षण किया और सभी नमूनों में थैलेट और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों की मौजूदगी पाई गई। दोनों प्रदूषक रसायनों में कैंसर कोशिकाएं बनाने की क्षमता होती है। टॉक्सिक्स लिंक ने पाया कि विश्लेषण किए गए कुछ पैड में उनकी सांद्रता यूरोपीय विनियमन मानक से तीन गुना अधिक थी। Sanitary pads,
नई दिल्ली के राजीव गांधी कैंसर अस्पताल की डॉ. स्वरूपा मित्रा का कहना है, सैनेटरी पैड्स के थैलेट और अन्य केमिकल महिलाओं के हार्मोन सिस्टम को प्रभावित करते हैं। इसका असर अंडाणुओं पर सबसे ज्यादा पड़ता है। इससे बांझपन, समय से पहले डिलिवरी, बच्चे का वजन कम होना, गर्भपात और समय से पहले मेनोपॉज की आशंका बढ़ जाती है। Cancer-causing chemicals in it
स्रोत : एनएफएचएस-5
2016- 21 मे कितना बढ़ा सेनेटारी पैड्स का उपयोग |
बिहार | 90.0% |
ओडिशा | 72.0% |
मध्यप्रदेश | 61.0% |
त्रिपुरा | 60.1% |
उत्तरप्रदेश | 58.2% |
राजस्थान | 57.0% |
प. बंगाल | 56.6% |
झारखंड | 56.1% |
हर दिन 34 करोड़ सैनेटरी नैपकिन की जरूरत |
निर्माण और उपयोग पर भारत में कड़े मापदंड नहीं..सख्त नियम जरूरी
सुरक्षा के स्वच्छ साधनों को अपनाने की बजाय भारतीय महिलाओं को सैनिटरी पैड का उपयोग करने के लिए कहा जा रहा है। कार्सिनोजेन्स सहित हानिकारक रसायनों की उपस्थिति महिलाओं के विश्वास के लिए एक बड़ा झटका है। यूरोपीय देशों में सख्त नियम हैं लेकिन सैनिटरी पैड की संरचना, निर्माण और उपयोग पर भारत में कड़े मापदंड नहीं हैं। हालांकि ये बीआईएस मानकों के अधीन हैं, लेकिन इनमें रसायनों पर कुछ भी विशिष्ट निर्देश नहीं है। Cancer-causing chemicals in it
नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से पता चला है कि 15-24 वर्ष की लगभग 64 प्रतिशत महिलाएं सैनिटरी पैड का उपयोग करती हैं। अनुमान लगाया गया है कि अधिक समृद्ध समाज में पैड का अधिक उपयोग होता है। इस बीच, भारतीय सैनिटरी पैड बाजार 2021 में 618.4 मिलियन डॉलर के मूल्य पर पहुंच गया। आईएमएआरसी समूह के अनुसार, उम्मीद है कि यह बाजार 2027 तक 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा। Cancer-causing chemicals in it
अमरीका और यूरोपीय देशों में इन पैड को लेकर सख्त नियम हैं। भारत में पैड की संरचना, निर्माण, इस्तेमाल को लेकर कड़े मापदंड नहीं हैं। Sanitary pads,
फिर क्या हैं विकल्प
भारत में 30 से ज्यादा ऐसी संस्थाएं हैं जो रियूजेबल सैनेटरी पैड्स बना रही हैं। इसमें केले के फाइबर, कपड़ा या बैंबू से बने पैड्स शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के महेश खंडेलवाल रेड क्रॉस सोसायटी के साथ ‘वी’ सैनेटरी नैपकिन बना रहे हैं जो बेहद सस्ते व सुरक्षित हैं। उपयोग के बाद पैड्स जैविक खाद में बदल जाते हैं।
Attention Sanitary pads are giving cancer ..taking away the pleasure of motherhood ..Study claims: Cancer-causing chemicals in it