राष्ट्रीय खबर डेस्क खबर 24×7 जयपुर // जल जीवन मिशन में 20 हजार करोड़ के गड़बड़ी वाले टेंडरों के आरोपों से घिरा जलदाय विभाग का झूठ पकड़ा गया है। इस प्रोजेक्ट में एक हजार करोड़ लागत के टेंडर हासिल करने वाली गणपति ट्यूबवेल कंपनी और श्रीश्याम ट्यूबवेल कंपनी ने इरकॉन इंटरनेशनल कंपनी का जो अनुभव व पूर्णता प्रमाण पत्र लगाया था, वह फर्जी है।
खुद इरकॉन इंटरनेशनल कंपनी ने इसका खुलासा किया है। गंभीर यह है कि कंपनी ने पीएचईडी अधिकारियों को 7 जून को ही इसकी जानकारी दे दी थी, जिसमें साफ कर दिया था कि कथित प्रमाणपत्र फर्जी है। इसके बावजूद अफसरों ने टेंडर हासिल करने वाली दोनों फर्मों के खिलाफ सख्त एक्शन नहीं लिया। इसके बाद इरकॉन कंपनी ने तीन दिन पहले विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को पत्र लिखा है। इससे सकते में आए विभाग नेp आनन-फानन में इन कार्यों पर रोक लगाकर जांच कमेटी गठित की।
जबकि, कुछ दिन पहले तक विभागीय अधिकारी किसी तरह की गड़बड़ी नहीं होने का दावा कर दोनों कंपनियों को बचाते रहे। अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिर इस गतिविधि के पीछे कौन है और उन्हें क्यों बचाया जा रहा है। राजस्थान पत्रिका इस मुद्दे को उठाता रहा है।
कौन है इस फर्जीवाडे़ के पीछे
कंपनी के पत्र के बाद यह जरूरी हो गया है कि करोड़ों के कथित घोटाले के पीछे कौन अधिकारी और नेता है। पहले तो चहेती कंपनियों को टेंडरों में 40 प्रतिशत से ज्यादा दर पर काम सौंपने का खाका तैयार किया गया। जब मामला खुला तो टेंडर निरस्त कर अफसरों ने बचाव की गली ढूंढी। सांसद किरोड़ीलाल मीणा ने भी इस मामले को लेकर शिकायत दी है।
इरकॉन का पत्र, पकड़ा गया झूठ
इरकॉन ने साफ कर दिया है कि पीएचईडी की ओर से कथित तौर पर जो कहा गया वह सही नहीं है। कंपनी की ओर से न तो कोई क्लीन चिट दी गई है और न ही कथित पूर्णता प्रमाणपत्र को सत्यापित किया गया।
कंपनी ने पीएचईडी से वह जांच रिपोर्ट भी मांगी है, जिसके आधार पर अफसरों ने दोनों फर्मों की ओर से दिए गए प्रमाण पत्र को जांच में सही बताया था। कंपनी ने फर्जी प्रमाण पत्र भी मांगे हैं, लेकिन अभी तक विभाग ने उन्हेे नहीं सौपें हैं।